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Title :कृष्णा सीख
Blogger :पूजा
SUbject :Lord Krishna asks if it is not wrong to blame someone else for our unfulfilled desires
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जब भी किसी की इच्छा या आकांक्षा भंग होती है तो उसका ह्रदय क्रोध से भर जाता है.जिस व्यक्ति को वो अपना अपराधी समझता है उसे दंड देने का प्रयन्त करता है. पर क्या हमारी इच्छा या आकांक्षा का भंग होना सदा ही किसी का अपराध होता है?
इच्छाओ के अपूर्ण रहने के तो की कारन हो सकते है .कुछ संजोग के कारन अपूर्ण रह जाती है तो कुछ नियति के कारन और कुछ इच्छाओ का तो स्वरुप ही ऐसा होता है के वो पूर्ण नहीं हो सकती.बिना परिस्थिति का विचार किये किसी को दोषी मान लेना न्याय नहीं प्रतिशोध है.न्याय का आधार तो दया है करुणा है, और प्रतिशोध का आधार क्रोध है अहंकार है.
अर्थात हृद्धय में करुणा धारण किये बिना किसी के अपराध के विषय में विचार करना किसी को दंड देना क्या अपने आप में अन्याय नहीं है?
स्वयं विचार कीजिये ....